जैविक खाद

पंचगव्य

प्राचीन काल से ही भारत जैविक आधारित कृषि प्रधान देश रहा है। हमारे ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख किया गया है। पंचगव्य का अर्थ है पंच+गव्य (गाय से प्राप्त पाँच पदार्थों का घोल) अर्थात गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, और घी के मिश्रण से बनाये जाने वाले पदार्थ को पंचगव्य कहते हैं। प्राचीन समय में इसका उपयोग खेती की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने के साथ पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता था।

विशेषतायें

जैव उवर्रकों का फसलों/सब्जियों में उपयोग एवं लाभ

आज कृषि उत्पादन को लगातार बढ़ाना कृषि वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। सघन खेती से मृदा में पोषक तत्व धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। इस कमी को रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से पूरा किया जाता है। अधिकांश किसान संतृप्त मात्रा में रासायनिक खाद के उपयोग के बावजूद इष्टतम उत्पादन लेने से वंचित हैं। अतः रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से होने वाला लाभ घटता जा रहा है। साथ ही मृदा स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर दिखाई पड़ रहा है, जिससे देश में स्थाई खेती हेतु खतरा पैदा हो रहा है। फसलों द्वारा भूमि से लिये जाने वाले प्राथमिक मुख्य पंोषक तत्वों- नत्रजन, सुपर फास्फेट एवं पोटाश में से नत्रजन का सर्वाधिक अवशोष

वर्मीवाश : एक तरल जैविक खाद

ताजा वर्मीकम्पोस्ट व केंचुए के शरीर को धोकर जो पदार्थ तैयार होता है उसे वर्मीवाश कहते हैं। यह भिन्न-भिन्न स्थानों पर विभिन्न संस्थाओं/व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग विधियां अपनायी जाती हैं, मगर सबका मूल सिद्धान्त लगभग एक ही है। विभिन्न विधियों से तैयार वर्मीवाश में तत्वों की मात्रा व वर्मीवाश की सांद्रता में अन्तर हो सकता है।

बनाने की प्रक्रिया:-

वर्मीकम्पोस्ट : खेती के लिए उपयोगी

हमारे देष का एक बड़ा भाग कृषि उत्पादन पर निर्भर करता है। भारतवर्ष में 60 के दषक में हरित क्रांति के प्रारंभ होने के साथ ही खाद्यान्नों के उत्पादन में वृध्दि हुई है। लेकिन अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक उर्वरको का अधिक एव अनियमित प्रयोग किया जाता रहा है। रासायनिक उर्वरक व कीटनाषको के अत्याधिक प्रयोग से भूमि के भौतिक व रासायनिक गुणों पर विपरीत प्रााव पडता है तथा पर्यावरण संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो रही है। मृदा को स्वस्थ बनाए रखने, उत्पादन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पर्यावरण और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से जैविक खादों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

भूमि की उत्‍पादन क्षमता बढाने में जैव उर्वरकों का महत्‍व

रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उपज में वृद्धि तो होती है परन्‍तू अधिक प्रयोग से मृदा की उर्वरता तथा संरचना पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडता है इसलिए रासायनिक उर्वरकों (Chemical fertilizers) के साथ साथ जैव उर्वरकों (Bio-fertilizers) के प्रयोग की सम्‍भावनाएं बढ रही हैं।

जैव उर्वरकों के प्रयोग से फसल को पोषक तत्‍वों की आपूर्ति होने के साथ मृदा उर्वरता भी स्थिर बनी रहती है। जैव उर्वकों का प्रयोग रासायनिक उर्वरकों के साथ करने से रासायनिक उर्वकों की क्षमता बढती है जिससे उपज में वृद्धि होती है। 

सींग खाद

भूमि के लिए एक उत्तम वरदान (पूनम पर देसी खाद बनाने की विधि)
१. गाय, बैल के सींगों के ढेर में से गाय के सींगों की पहचान इस बात से करनी चाहिए कि गाय के प्रत्येक बछड़े के जन्म पर उसकी सींग के ऊपर एक गोल चक्र (सर्कल) उभरता है l
२. खुले आकाश के नीचे जहाँ बाहर से पानी का बहाव न हो तथा पेड़ की छाया या मूल (जड़) अथवा केंचुए न हों, ऐसी जगह पर २ फुट लम्बा, २ फुट गहरा और २ फुट चौड़ा गड्ढा करें l

बायो गैस घोल

बायो गैस संयंत्र में जीवाणुओं द्वारा गोबर के अवातीय विघटन से प्राप्त घोल की खाद की उर्वरक क्षमता , सवातीय विघटन द्वारा उत्पन्न खाद के मुकाबले में अधिक उपयोगी है . इसमे पानी की अधिक (% 90) के कारण इसे निर्जलीकरण की आवश्यकता होती है मात्रा , यह प्रक्रिया धुप में सुखाने से लेकर यांत्रिक क्रियाओ जिनसे विभिन्न तरीकों से संपन्न की है जाती .

1. रेत की तह का घोल को सुखाने , अवसादन और अवशोषण तथा शुष्क कार्बनिक कचरा और उसके निश्यन्दन में प्रयोग को काफी उपयोगी पाया है गया .

वर्मी वाश

वर्मी वाश कैसे बनाएं:

जिस तरह केंचुओं का मल (विष्ठा) खाद के रूप में उपयोगी है, उसी तरह इसका मूत्र भी तरल खाद के रूप में बहुत असरकारक होता है। केंचुओं के मूत्र को इकट्ठा करने की एक विशेष पद्धति होती है जिसे वर्मी वाश पद्धति कहते हैं। वर्मी वाश बनाने के लिए 40 लीटर की प्लास्टिक की बाल्टी अथवा केन लेकर उसे निम्न प्रकार से भरा जाता है। बाल्टी में नीचे एक छोटा छेद करते हैं जिससे वर्मी वाश एकत्र किया जाता है।

सिलिका युक्त सींग की खाद (बी.डी 501)

सिलिका पाउडर आटे की लोईनुमा बनाकर गाय की सींग में भर दें। छः माह बाद गोबर की सींग खाद के समान ही उसे निकाल कर जल में घोल लें। इसका भंडारण सदा शीशे के पात्र में करना चाहिए। इस प्रकार से निर्मित सिलिका खाद फंफूदनाशक के रूप में प्रभावी तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

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