साकेत प्रवेशिका 07 में चर्चा(11/09/2017): कृत्रिम रसायनों के प्रयोग से खेतों में क्या परिवर्तन हुए

बाबुलाल धाकड़ MP: जमीन की उत्पादन क्षमता कमजोर हो गई

पंकज त्यागी UP: फसलों और बीमारीयो मे बढोतरी।

विकाश शुक्ला UP: मित्रकितो का मरना।मिट्टी का कड़ापन

सुरेश द्विवेदी HR: सरजी खेतो की उपज कम हुई है लम्बे अंतराल के बंजर के बराबर। निचे का पानी भी दूषित हुआ है

शंकरसिंह UP: खेत कड़कपन आगया पहले जहाँ बैलो से जुताई हो रही थी वहीँ अब ज्यादा पावर के ट्रैक्टर से भी नहीं हो रही है उपजाऊ क्षमता कम हो गई फसल की गुणवत्ता भी कम हो गई।।।

भाई GJ: जमीन में से केसुआ चला गया इसी कारण उत्पन्न क्षमता कम हुई

संजय सिंह UP: 1 मृदा प्रदूषित

2- स्वास्थ्य प्रभावित यानी शरीर की immuno power कम हो जाना सबसे बड़ी समस्या बन गयी है,anticbotic काम नही कर पा रही है

Jugmohan MP: और भूमि में नत्रजन की मात्रा में कमी एना

पंकज नायक MP: जमीन की उत्पादन क्षमता कमजोर हो गई है और मिथि के साथ साथ मनसियू जीवन परर भी भूरा असर देखा जा सकता है

डॉ. शक्तिकांत UP: सर रसायनों के लगातार प्रयोग ने खेतों की उपजाऊ क्षमता को ही समाप्त कर दिया है मै स्वय कुछ खेतों से कम उत्पादन ले लहा हूँ ।

रूपकिशोर UP: श्री मान रसायनों के प्रयोग से जो कैंसर जैसी बीमारी लगी है वो है गुणवत्ता में कमी और उम्मीद से कम उत्पादन। और प्राणी जगत में उतपन्न अनेक भयंकर रोग। मित्र किटो का बिलुप्त हो जाना।

प्रताप भाई GJ: पशुओं में बीमारी ज्यादा होने लगी

जसवन्तसिंह MP: जमीन से प्राकृतिक जीवांश खत्म हुए ,prestsite एवं विषैलेपन के जहर ने इंसान पशु पक्षी सभी के जीवन में प्रवेश कर लिया,बीमारियां बढ़ी,किसान की लागत बढ़ी , परपरागत कृषि नष्ट हुई, गोवंश का अंत हुआ यह सब परिणाम रसायनों के उपयोग का।कुल मिलाकर आने वालों पीढ़ियों के लिए हमने पूरी कृषि तंत्र को नष्ट कर दिया

Dr. Jitender Singh: किसान के नजरिये से होने वाले परिवर्तन

जमीन कड़ी, सूक्ष्म जीव समाप्त, उपजाऊपन में कमी, मृदा दूषित, फसल में रोगों का अधिक प्रकोप, कीटों में बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता, भूमिगत जल स्तर गहराता जा रहा, जल प्रदूषित, बढ़ता खर्च, घटता लाभ, घटता उत्पादन, बाजार पर निर्भरता, जैव विविधता समाप्त, भूमि में घटता कार्बनिक पदार्थ, जीवांश, देशी बीज समाप्त, बढ़ती बीमारियां

Dr. Jitender Singh: इसका समाधान आप किस रूप में देखते हैं।

Jugmohan MP: गोवंस आधारित खेती पैर

Manges (MH): हमे फिरसे हमारी गो आधारित जैविक खेती करनी होगी

धनराज गुर्जर MP: इसका समाधान बिना खर्चे वाले घरेलू साधनों का प्रयोग कर समाधान कर सकते हैं

अमित देवल UP: जैविक एवं प्राकृतिक खेती से

रणजीत, नालन्दा(बिहार): प्रकृति से उपलब्ध संसाधनों यथा गोबर केंचुआ सुक्ष्म जीव आदि ।

Dr. Jitender Singh: बढ़िया चिंतन

सभी बधाई के पात्र हैं

खेती के संदर्भ में आपने सुझाया

परंपरागत खेती, गौ आधारित खेती, जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, बायोडायनेमिक खेती, वैदिक खेती, शिवयोग खेती, अग्निहोत्र, संरक्षित खेती, ऋषि खेती, जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग, नेच्युको फार्मिंग, मिश्रित खेती, चिरस्थाई खेती, वैकल्पिक खेती, परमाकल्चर, एले क्रोपिंग

Dr. Jitender Singh: किसान को समाधान के रूप में इन मे से किसी न किसी विधि को अपनाने की सलाह दी जाती है। अब इसमें साकेत किस विधि का चुनाव करेगा?

राजपालसिंह UP: बताये सर

Dr. Jitender Singh: उपरोक्त सभी विधियों की अपनी अपनी कुछ विशेषताएं है। भले ही विधियां कई हैं पर इन सब मे कुछ समानता हैं इन विधियों की मूल भावना के केंद्र बिंदु में निम्न तथ्य विचारणीय हैं।

राजपालसिंह UP: कौन कौन से

Dr. Jitender Singh: इसको पढ़िए

प्रकृति ही खेती का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। प्रकृति के द्वारा उत्पादन करने में किसी भी प्रकार के रसायनों का उपयोग किये बिना और जल कि न्यूनतम मात्रा के द्वारा ही अधिकतम उत्पादन प्राप्त होता है।

न्यूनतम जुताई के साथ साथ प्रकृति के सिद्धान्तों के अनुरूप की जाने वाली खेती ही पर्यावरण हितैषी और चिरस्थायी हो सकती है।

मृदा को सजीव मानते हुए इसके समुचित पोषण का ध्यान रखना आवश्यक है।

मृदा के जीवंत और उपजाऊ होने में सूक्ष्मजीवों का महत्वपूर्ण योगदान है अत: सूक्ष्म जीवों के संरक्षण और इनकी संख्या में वृद्धि के बिना दीर्घकालिक और लाभपरक कृषि नहीं हो सकती है।

मृदा का समुचित आच्छादन करके मृदा में स्थापित जैवतंत्र को अक्षुण्य रखा जा सकता है , इसके खनिज क्षरण और इनके अनावश्यक दोहन को भी संतुलित किया जा सकता है।

साभार साकेत कृषि मार्गदर्शिका

Dr. Jitender Singh: उपरोक्त सभी विधियों के मूल में मुख्य रुप से यही सिद्धांत समाहित है

तुषार UP: सही कह रहे है सर शुक्ष्म जीव बहुत ही मुख्य है हमारे खेतो के लिए।

अभिषेक जैन, भीलवाड़ा(RJ): डॉक्टर साहब किसी अचानक कार्य की वजह से चले गए है

आगे बढ़ते है....

अभिषेक जैन, भीलवाड़ा(RJ): साकेत ने खेती की सभी विधियों में से चुन चुन के अच्छी चीजों को लिया एवं खेती किसानी का एक समेकित मॉडल बनाया, जिसे हम समेकित जैविक खेती कहते है।

Manges (MH): अभिषेकजी दुभागेसे कुच किसान और विशेषज्ञा एकहि विधीको अपना कर एक अलग पंथ खडा करते दिखते है

अमित चौधरी UP: ऐसा करने से ही किसान की स्थिति में सुधार होगा और वो अपने खेत की ताकत को दोबारा बनाकर अपनी उत्पातकदा बढा पायेगा

अभिषेक जैन, भीलवाड़ा(RJ): मूल सिद्धांत , मूल भावना वही है जो उपरोक्त विधियों में है, लेकिन किसी विधि में किसी समस्या को देखा तो दूसरी किसी विधि से उसके उपाय को ढूंढा गया। इस तरह खेती किसानी का एक समेकित जैविक खेती के नाम से मॉडल बनाया हमने, जो किसी एक ही विधि को समेटने के बजाय सभी विधियों के गुणों को अपने अंदर समाहित किये हुए है

नही, हमे पंथ के या किसी एक विधि के चक्कर मे नही पड़ना है। हमे हमारे लिए, किसान के लिए अनुकूल, सुगम और परिणाम दायक विधि का चयन करना है

अमित चौधरी UP: ऐसी वो विधि जिसमें उपरोक्त सभी विधियों का समागम हो हम जानने के लिये उत्सुक है

Manges (MH): इसी विधी मे हम सब किसान भाईयोकी भलाई है

अभिषेक जैन, भीलवाड़ा(RJ): समेकित जैविक खेती का नाम दिया गया है उसे।

हमारी हर प्रवेशिका में इस विधि में भी हम साकेत किसानों द्वारा किये गए नवाचार और नवीन प्रयोगों को जोड़ते रहते है।

डॉ. शक्तिकांत UP: उचित प्रयास है।सर धन्यवाद

अभिषेक जैन, भीलवाड़ा(RJ): कुल मिला के एक किसान क्या चाहेगा???अच्छी फसल या किसी विधि के पीछे भागना???
जब हमारा उद्देश्य स्पष्ट है कि हमे रसायन मुक्त उपज चाहिए, अच्छा और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन चाहिए। तो क्यो किसी एक विधि का अक्षरशः पालन करना???अपितु देश काल समय परिस्थिति और अपनी सुविधा अनुसार कम से कम खर्च में अपनी  खेती किसानी करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए

धन्यवाद