HaNPV

हैलियोथिस एम.पी.वी.

यह हरी सुंडी हैलियोथिस आर्मोजोरा एक हानिकारक रोग उत्पन्न करने वाला न्यूक्लियर पाॅलीहेडासिस विषाणु है, जो अति संक्रमणशील होता है। यह डी.एन.ए. से बना होता है-एन.वी.पी. कपास, चना, अरहर, मटर, सोयाबीन, मूंगफली, सूर्यमुखी, सब्जियों, टमाटर व अन्य महत्वपूर्ण फसलों में लगने वाले हैलियोथिस की संूडियों का अत्यन्त प्रभावशाली ढ़ंग से नियंत्रण करता है। यह रासायानिक दवाइयों के प्रति रियोथिस रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर चुकी है। हैलियोथिस की सूंडियों का भी नाश करता है।

नियंत्रण विधि

एन.पी.वी. की छिड़काव की गई पत्तियों और फलों को जब सूंडि़यां खाती है , तो एम.पी.वी. विषाणु उसकी आंत में प्रवेश कर जाता है। उसमें पाई जाने वाली न्यूक्लियाई को ग्रस्त करना प्रारम्भ कर देता है जिसके परिणामस्वरूप प्रभावित सूंडि़या शिथिल पड़ जाती है, त्वचा भुरभुरी कोमल रक्त गंदा व गाढ़ा दुधिया रंग का हो जाता है। अन्त में मृत सुंडिया सिर जमीन की ओर करके लटक जाती है, इन सभी मरी हुई सूंडि़यों को एकत्रित करके कृषक बन्धू स्वयं भी एन.पी.वी. का निर्माण कर सकते हैं। मरी हुई सूंडि़यों को पीस कर या मिक्सी में पीस कर रस निकाल कर इसे पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।

मात्रा व उपयोग

एन.पी.वी. की उपरोक्त मात्रा 500 से 600 लिटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। घोल में 2 से 5 किलोग्राम गुड़ व 100 ग्राम डिटर्जेंट पाउडर मिलाने से घोल की चिपकने व फैलने की गुणवत्ता में वृद्धि हो जाती है।

भण्डारण

एन.पी.वी. रेफ्रीजरेटर में 1 से 2 वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

लाभ

एन.पी.वी. केवल हैलियोथिस की सुंडियों को क्षति पहुंचाती है।
एन.पी.वी. मधुमक्खियों, मछलियों स्तनधारी एवं फसल के कीटों के प्राकृतिक शत्रु कीटों को कोई क्षति नहीं पहुंचाता है।
एन.पी.वी. को सभी रासायनिक दवाइयों के साथ मिलाकर भी उपयोग में लाया जा सकता है।
एन.पी.वी. उपज में वृद्धि में सहायक होता है।

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