मिट्टी परीक्षण का महत्व

मिट्टी की बनावट बड़ी पेचीदा होती है और कोई किसान अपने वर्षों के अनुभव के बावजूद भी अपने खेत की उपजाऊ शक्ति का सही-सही अन्दाजा नहीं लगा सकता। अक्सर किसी पोषक तत्व की कमी भूमि में धीरे-धीरे पनपती है और पौधों पर जब कमी के चिन्ह प्रगट होते हैं तो प्रायः काफी देर हो चुकी होती है और फसल की पैदावार पर विपरीत प्रभाव जोर पकड़ चुका होता है। दूसरी ओर हो सकता है कि भूमि में किसी एक तत्व या तत्वों की मात्रा अत्यन्त पर्याप्त हो। परन्तु हम उस तत्व या तत्वों की निरन्त सामान्य मात्रा में इस्तेमाल करते रहते हैं। ऐसा करना न केवल आर्थिक दृष्टि से हानिकारक हो सकता है अपितु तत्वों के आपसी असन्तुलन वाली स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। जिसका पौधों की पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

इसलिए किसी खेत की उपजाऊ शक्ति का सही अंदाजा लगाना आवश्यक है ताकि यह तय किया जा सके कि निरन्तर अच्छी पैदावार पाने हेतु खेत में कौन-कौन सा उर्वरक कितनी मात्रा में डालना चाहिए। ऐसा मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना संभव है।
 
मृदा परीक्षण में हमें क्या मालूम होता है ?

• भूमि में उपलब्ध नाईट्रोजन फॉस्फोरस, पोटाश आदि तत्वों और लवणों की मात्रा और पी. एच. मान का पता चलता है।
• भूमि की भौतिक बनावट मालूम होती है।
• जो फसल हम बोने जा रहे हैं उसमें खादों की कितनी-कितनी मात्रा डालना आवश्यक होगा।
• भूमि में किसी भूमि सुधारक रसायन जैसे कि ऊसर भूमि के लिए जिप्सम, फॉस्फोजिप्सम या पाइराईट्स और अम्लीय भूमि में चूने की आवश्यकता है या नहीं ? यदि है तो किसी भूमि सुधारक की कितनी मात्रा डालनी चाहिए ?