रासायनिक खाद भूमि की बरबादी कारण

रासायनिक खाद भूमि की बरबादी कारण

खरपतवार की - सनई, रिजका आदि की ऐसी हरी फसलें उगाई और जोतकर जमीन में मिलाई जा सकती हैं जो जमीन की उर्वरा शक्ति की रक्षा करती रह सकें। पशु-धन नष्ट न किया जाय और उसके गोबर को उपले आदि बनाकर नष्ट करने की अपेक्षा यदि खाद्य के रूप में ही उसे पुनः वापिस कर दिया जाय तो यह प्रश्न उत्पन्न ही न होगा कि जमीन कमजोर हो गई और उसकी पैदावार घट गई।

इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि जिस प्रकार आहार-विहार को सुसंयत रखकर स्वास्थ्य रक्षा के सीधे उपाय को छोड़कर लोगों की समझ में यह आ गया है कि अप्राकृतिक और उच्छृंखल जीवन-क्रम बनाकर मनमानी की जाय और उसके दुष्प्रभाव से बचने के लिये दवाओं की शरण ली जाय। उसी प्रकार भूमि के बारे में भी यही नीति अपनाई गई है। उसे खरपतवार और गोबर की खाद से वंचित किया जा रहा है। पशु धन घटता चला जा रहा है और उसके गोबर का दूसरा उपयोग हो रहा है। जो घास-पात खेत से ली जाती है वह प्रकारान्तर से उसे वापिस नहीं मिलती। ऐसी दशा में जमीन यदि कम उपज देने लगे तो यह स्वाभाविक ही है।

इस कमी की पूर्ति के लिये आज ही सभ्यताभिमानी उद्धत बुद्धि कोई जल्दी पहुँचने वाली पगडंडी ढूँढ़ती है। दवाओं के आधार पर स्वास्थ्य संरक्षण एवं रोग निवारण की जो सनक कार्यान्वित हो रही है वही तरीका भूमि के लिए भी अपनाया जा रहा है। रासायनिक खादों से भूमि को उत्तेजित करके उससे अधिक कमाई करने की रीति-नीति अपनाई जा रही है। सोचा जा रहा है इस तरह अधिक पैदावार का लाभ उठाया जा सकेगा। पर यह आशा अन्ततः दुराशा मात्र ही सिद्ध होगी। तथाकथित स्वास्थ्य बढ़ाने वाली दवाओं की भरमार से बाजार भरा पड़ा है। लोग उन्हें खरीदते और खाते भी बहुत हैं पर देखा जाता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य दिन-दिन गिरता ही जाता है और औषधि खाद्य खाने वाले अपेक्षाकृत और भी अधिक दुर्बल होते चले जाते हैं। रोगों के निवारण करने के लिए जितनी तीक्ष्ण, तीव्र, उत्तेजक और विघातक औषधियाँ बनी हैं उसी अनुपात से रोग वृद्धि का सिलसिला भी अग्रगामी ही होता चला जा रहा है। यही प्रयोग अब जमीन के शरीर पर भी किया जा रहा है। आशायें बहुत दिलाई जा रही हैं और कहा जा रहा है कि रासायनिक खाद हमारी भूमि को अधिक उत्पादन दिला सकने में समर्थ होंगे। आरम्भ में ऐसा होता भी है। नशा पीकर बलवान बने फिरने वाले शराबी की तरह कुछ दिनों तक यह प्रयोग लाभदायक दीखता है, पर अन्ततः जिस प्रकार नशा उतरने पर शराबी पहले से भी अधिक अशक्त हो जाता है। वही हाल इस अन्धाधुन्ध रासायनिक खादों के प्रयोग का भी होने वाला है। हो भी रहा है।