जैविक खेती पर्यावरण के लिए खतरा नही बल्कि लाभकारी

 कुछ दिनों पहले मैंने समाचार पत्र के माध्यम से सुना की कुछ बैज्ञानिकों ने जैविक को रासायनिक खेती की तरह ही दर्जा दे डाला  हमार देश के विशेषज्ञ वही बात ही बोल रहे है जो कुछ समय पहले अमेरिका ने कहा था मुझे ये समझ नही आता है की हमारे विशेषज्ञ अपना परीक्षण करने के बजाय पश्चिमी देशो द्वारा दिया गया त्थ्थों को क्यों दोहराते है 
अमेरिका ने कहा है तो सत्य ही होगा ऐसी अबधारना हमारे ऊपर हाबी हो चुकी है 

लुप्त होती पारम्परिक जल-प्रणालियाँ

यह देश-दुनिया जब से है तब से पानी एक अनिवार्य जरूरत रही है और अल्प वर्षा, मरूस्थल, जैसी विषमताएँ प्रकृति में विद्यमान रही हैं- यह तो बीते दो सौ साल में ही हुआ कि लोग भूख या पानी के कारण अपने पुश्तैनी घरों-पिण्डों से पलायन कर गए। उसके पहले का समाज तो हर जल-विपदा का समाधान रखता था। अभी हमारे देखते-देखते ही घरों के आँगन, गाँव के पनघट व कस्बों के सार्वजनिक स्थानों से कुएँ गायब हुए हैं। 

जल संरक्षण व संग्रहण सबसे जरूरी

सामान्यतः कृषि लगभग पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा खेती पर आश्रित है। अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती की पैदावार है इसलिए जरूरी है कि संतुलित और समुचित रूप से मॉनसून की कृपा बनी रहे। लेकिन इस वर्ष बारिश औसत से कम है। यह जरूरी है कि भविष्य के लिए जलस्रोतों के बेहतर प्रबंधन के प्रयास किए जाएं।

कमजोर मानसून के अनेक कारण हैं। जिसमें प्रमुख रूप से ओजोन परत की भी मुख्य भूमिका हमें दिखाई देती है। थोड़े ही शब्द में ओजोन परत क्या है इसे भी जान लें- ऑक्सीजन के तीन अणु आपस में मिलकर ओजोन गैस का निर्माण करते हैं। 

किसान स्वंय खाद घर में बना सकता है कम से कम खर्च में

Jeevamrit

खाद बनाने कि विधि ।
एक सरल सूत्र  जिसको भारत में पिछले 12-15 वषों में हजारो किसानों ने अपनाया है और बहुत लाभ उनको हुआ है। एक एकड़ खेत के लिए किसी भी फसल के लिए खाद बानाने कि विधि ।
1) एक बार में 15 किलो गोबर लगता है और ये गोबर किसी भी देसी गौमाता या देसी बैल का ही होना चाहियें। विदेशी या जर्सी गायें का नहीं होना चाहियें ।
2) इसमें मिलायें 15 लीटर मूत्र, उसी जानवर का जिसका गोबर लिया है । दोनों मिला लीजिए प्लास्टिक के एक ड्रम में रख दें ।

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