निबौली सत् एक सस्ता घरेलू जैविक कीटनाशक
कृषि प्रधान देश भारत में दिनो दिन बढ़ती आवादी का सीधा प्रभाव खाद्यान्न पर है। पिछले वषों में अनाज का उत्पादन तो बढ़ा है, परन्तु इसको सावधानी से संरक्षित न किया जाय तो इसमें घुन, कीड़े, सूड़ी व फंफूद लगने की सम्भावना बढ़ जाती है, तथा यह खाने व बीज योग्य नहीं रहता है खाद्यान्नों के भण्ड़ारण के लिए जो कीटनाशी या रसायन प्रयोग में लाये जाते हैं वे प्रायः जहरीले होते हैं जिसके कारण प्राणी जीव पर इसका विपरीत कुप्रभाव पड़ता है। इस प्रकार संरक्षित अनाज बिना धन खर्च किये मानव के लिए भी पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक रहेगा। प्राणी जीव एवं खाद्यान्नों के भण्ड़ारण में नीम का उपयोग इस प्रकार है।
खाद्यान्न में नीम की पत्तियाँ मिलानाः-
नीम की सूखी पत्तियों को वारीक पीसकर गारे में मिलाकर कोठियों के अन्दर एवं बाहर से लीप देना चाहिए, इसके अलावा अनाज को कोंठों या कुठलों में सूखी नीम की पत्तियों को जलाकर इसका ढक्कन बन्द कर दें।जिससे पत्तियो के धूऐं से कोठी के सूराकों में उपस्थित सूक्ष्म जीव नष्ट हो जायेगे। तथा अनाज फंफूद, कीटों से मुक्त रहेगा।
भण्ड़ारित किये जाने वाले अनाज में 3-5 प्रतिशत सूखी नीम की पत्तियाँ मिलाने से उसमें घुन एवं अन्य कीड़े मकोड़े नहीं लगते है।
नीम की पत्तियाँ विछानाः-
कोठी या कुठलों में अनाज भरने के पूर्व लगभग 3-4 इंच सूखी पत्तियों की परत कोठी की सतह पर विछा देना चाहिए, इस प्रकार क्रमशः लगभग 2 फीट तक अनाज भरने के पश्चात पत्तियों की एक-एक तह को लगाते जायें, नीम की सूखी पत्तियों को अखवार में रखकर अनाज की कोठी या कुठलों में रखी जा सकती है।
भण्डारण में उपयोगी बोरियों को उपचारित करनाः
प्रायः कृषक अनाज की बोरियों में भी भरकर रख देते है। इसके लिए आवश्यक है कि अनाज भरने से पूर्व बोरों को नीम की पत्तियों ड़ालकर उबाले गये पानी से रात भर (लगभग 2-10 प्रतिशत) उपचारित किया जाय एवं पानी से निकालकर बोरों को छाया में सुखा दें उसके बाद अनाज का भण्डारण करें।
दालों का भण्डारणः-
दालों के भण्डारण के लिए एक किलो दाल में एक ग्राम नीम का तेल मिलाकर मललें जिससे वह पूरी तरह से फैल जाये, जब दालों को पुनः प्रयोग में लाना हो तब उसे अच्छी तरह धोलें, समय के साथ नीम के तेल की महक धीरे-धीरे कम होने लगती है। जब दलहन को बुवाई के लिए तैयार करना हो तो उस स्थिति में एक किलो दाल बीज में 2 ग्राम नीम तेल की आवश्यकता पड़ती है। जो जैविक विधि का घोलक है।
निबोली का उपयोग-
निबौली सत् एक सस्ता घरेलू जैविक कीटनाशक जो कि नीम की पकी हुई निबौली (फल) को 12-18 घंटे पानी में भिगोयें तत्पश्चात भीगी हुई निबौली को लकड़ी के ड़ण्ड़े से चलायें जिससे निबौली के बीज का छिलका व गूदा अलग हो जाये, गूदे को निकालकर छाया में सुखायें, सूखे हुए गूदे को हाथ की चक्की/ओखली/मिक्सी में बारीक पीस कर पाउड़र बनायें पाउड़र को बारीख सूती कपड़े मे पोटली बनाकर शाम को पानी में भिगो दें।
सुबह पोटली को दबाकर रस निकाल लें तथा पोटली में बचे पदार्थ को फेंक दें तथा रस में 1 प्रतिशत साबुन मिलाऐं, तैयार निबौली सत् को 5 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। एक हेक्टेअर क्षेत्र में छिड़काव हेतु 5 प्रतिशत घोल तैयार करने के लिए 25 कि.ग्रा. निबौली 500 लीटर पानी तथा 5 किग्रा.साबुन की आवश्यकता होती है। नीम सस्ता, सुरक्षित एवं आसानी से गाँवों में उपलब्ध होने वाला हकीम है, अगर मानव, प्राणी में त्वचा एवं रक्त खराबी के कारण खुजली, खाज है तो इसकी पत्तियाँ पानी में उबालकर इसके स्नान करने से रोग से निदान पायेगें तथा पत्तियॉ नीम की खाने से रक्त साफ रहता है। त्वचीय रोगों से मुक्ति मिलती है। इसलिए ‘‘ नीम हकीम या नीम घर का वैद्य‘‘ की संज्ञा दी जाती है।