फसल चक्र को प्रभावित करने वाले कारक
फसल चक्र को प्रभावित करने वाले कारक
1॰ जलवायु सम्बन्धी कारक ॰ जलवायु के मुख्य कारक तापक्रम वर्षा वायु एवं नमी है । यही कारक जलवायु को प्रभावित करते हैं जिससे फसल चक्र भी प्रभावित होता है । जलवायु के आधार पर फसलों को तीन वर्गो में मुख्य रूप से बांटा गया है जैसे ॰ खरीफ रबी एवं जायद ।
2॰ भूमि संबंधी कारक भूमि संबंधी कारको में भूमि की किस्म मृदा उर्वरता मृदा प्रतिकिरया जल निकास मृदा की भौतिक दशा आदि आते हैं । ये सभी कारक फसल की उपज पर गहरा प्रभाव डालते हैं
3॰ सिंचाई के साधन सिंचाई जल की उपलब्धता के अनुसार ही फसल चक्र अपनाना चाहिए । यदि सिंचाई हेतु जल की उपलबधता कम है।
4॰ किसान की आर्थिक दशा किसानों की आर्थिक सिथति का भी फसल॰चक्र पर प्रभाव पड़ता है। किसान के पास पूंजी एवं संसाधनों की कमी होने से फसल चक्र में ऐसी फसलों का समावेश किया जाना चाहिए।
5॰ बाजार की मांग बाजर की मांग के अनुरूप फसलें ली जानी चाहिए जैसे शहर के नजदीक वाली भूमिओं में साग॰सब्जी वाली फसलों को प्राथमिकता देना चाहिए।
6॰ प्रक्षेत्र से बाजार की दूरी बाज की मांग एवं व्यापारिक दृषिट से ली गयी फसलों के लिए यह आवश्यक है कि बाजार प्रक्षेत्र के पास होना चाहिए।
7॰ आवागमन के साधन आवागमन के समुचित साधन उपलब्ध होने से फसल चक्र में सुविधा के अनुसार फसलों का समावेश करना चाहिए।
8॰ श्रमिकों की उपलब्धता कृषि में श्रमिकों का मुख्य कार्य होता है । यदि श्रमिक आसानी से व पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं तो सघन फसल॰चक्र अपनाया जा सकता है तथा फसल चक्र में नगदी फसलों को समावेशित लाभ लिया जा सकता है ।
9॰ खेती का प्रकार यदि खेती का मुख्य अंग पशु पालन है तो ऐसी जगह चारे वाली फसलें ली जायें ।
10॰ किसान की घरेलू आवष्यकताएं किसान को अपनी घरेलू आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर फसल॰चक्र अपनाना चाहिए।
11॰ सामाजिक रीति॰रिवाज फसलों के चुनाव पर सामाजिक विचारों का भी प्रभाव पड़ता है जैसे॰ प्याज लहसुन का सेवन न करने वाले किसान उन्हें उगाना नहीं चाहेंगे ।
12॰ राजकीय नियंत्रण तम्बाकू अफीम भांग आदि की खेती पर आबकारी कर लगता है और अधिकांष लाभांष सरकार को देना पड़ता हैए इस कारण इन फसलों को किसान अपने फसल॰चक्र में नहीं लगाना चाहेंगे ।
इस प्रकार प्रत्येक राज्य में वहा की जलवायु एवं भूमि परिसिथति के अनुसार अलग॰अलग फसल चक्र अपना जा सकते हैं ।
फसल॰चक्र का जैविक खेती में भूमि की उर्वरता एवं खाध पदार्थो की शुद्धता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।