ट्राइकोडर्मा
ट्राइकोडर्मा एक घुलनशील जैविक फफुंदीनाशक है जो ट्राइकोडर्मा विरडी या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम पर आधारित है। ट्राइकोडर्मा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सडन उकठा(फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोर्म्, स्केल रोसिया डायलेकटेमिया) जो फफूंद जनित है, में फसलों पर लाभप्रद पाया गया है। धान,गेंहू, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों फलों एवं फल व्रक्षो पर रोगों से यह प्रभावकारी रोकथाम करता है। ट्राइकोडर्मा के कवक तन्तु फसल के नुकसानदायक फफूंदी के कवक तन्तुओं को लपेटकर या सीधे अंदर घुसकर उनका जीवन रस चूस लेते हैं और नुकसानदायक फफूंदों का नाश करते हैं इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के दुवारा तथा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते हैं जो बीजों के चारों ओर सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदों से सुरक्षा देते हैं।
ट्राइकोडर्मा से बीजों में अंकुरण अच्छा होकर फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती हैं एवं उनकी नर्सरी से ही वृद्धि अच्छी होती है।
ट्राइकोडर्मा का प्रयोग निम्न रूप से किया जाना उपयोगी है
1. कन्द/कार्म/रायजोम/नर्सरी पौध का उपचार 5 ग्राम ट्राइकोडरमा को एक लीटर पानी में घोल बनाकर डुबोकर करना चाहिये तत्पश्चात बुवाई/ रोपाई की जाय
2. बीज शोधन हेतु 4 ग्राम ट्राइकोडरमा प्रति किलोग्राम बीज में सूखा मिलाकर बुवाई की जाय
3. भूमि शोधन हेतु एक किलोग्राम ट्राइकोडरमा को 25 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर एक सप्ताह तक छाया में सुखाने के उपरांत बुवाई के पूर्व प्रति एकड़ प्रयोग किया जाय।
4. बहुवर्षीय पेड़ों के जड़ों के चारों ओर गड्ढ़ा खोदकर 100 ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर को मिटटी में सीधे या गोबर /कम्पोस्ट की खाद के साथ मिलाकर दिया जाय।
यह एक जैविक उत्पाद है किन्तु खुले घावों, श्वसन तंत्र एवं आँखों के लिये नुकसानदायक है। अतः इसके प्रयोग के समय सावधानियां बरतनी चाहिये। इसके प्रयोग से पहले या बाद में किसी रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग न किया जाए।
ट्राइकोडरमा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।