लाल मटकू - एक कीटनाशी बुग्ड़ा
कपास की फसल में कच्चे बीजों से तेल पीने वाला एक बदबूदार कीड़ा है लाल बनिया जिसका शिकार करने वाले कीड़े इस प्रकृति में बहुत कम हैं. इन्हीं में से एक कुशल शिकारी है यह लाल- मटकू जी हाँ! सरसरी तौर पर देखने से तो यह बुग्ड़ा भी लाल बनिये जैसा ही नजर आता है. आये भी क्यों नही? दोनों का वंशक्रम Heteroptera व् कुनबा Pyrrhocoridae एक ही जो ठहरा. कीट विज्ञानियों की बोली में इस लाल- मटकू का नाम है: Antilochus cocqueberti.माध्यम आकार के इस बुग्ड़े का रंग कहीं से लाल और कहीं से काला होता है पर ये दोनों रंग होते है खूब चटकीले. इसके शारीर की बनावट लम्बौत्रिय अंडाकार होती है. इनके शारीर की लम्बाई अमूमन 16 -17 सै.मी. होती है. इनके निम्फ भी देखने में इन जैसे ही होते हैं सिवाय पंखों के. इस बुग्ड़े के निम्फ व् प्रौढ़ दोनों ही लाल बनिये का खून पीकर अपना गुजर-बसर व् वंश वृद्धि करते हैं. इसके अलावा हमारी फसलों में कभी कभार दिखाई देने वाले Alydidaeकुल के बुग्ड़ों का भी बखूबी शिकार कर लेते हैं.
इस लाल मटकू का प्रौढ़ जीवन काल तकरीबन दो से छ: माह का होता है, इस दौरान इसकी प्रौढ़ मादा औसतन 10 -12 बार अंड-निक्षेपण करती है. एक बार में 60 से 70 अंडे देती है. इस तरह से अपने जीवन काल में 600 - 700 अंडे देती है. अंड निक्षेपण से लेकर प्रौढ़ विकसित होने तक इन्हें दिवस अवधि अनुसार 45 से 90 दिन तक का समय लग जाता है. अपना जीवन पूरा करने के लिए इस कीड़े को 250 से भी ज्यादा लाल बनियों का खात्मा करना पड़ता है. यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस लाल मटकू के निम्फ लाल बनिये के निम्फों का तथा प्रौढ़ प्रौढ़ों का शिकार करना पसंद करते हैं.
वैकल्पिक मेजबानों की उपलब्धता व् इसकी अति सक्रियता के कारण कपास कि फसल में इस लाल बनिये को कीटनाशकों के इस्तेमाल से काबू करना नामुमकिन कार्य है. ऐसे हालात में प्रकृति प्रदत यह लाल-मटकू कपास की फसल में लाल बनिये को काबू रखने के लिए किसानों की सहायता कर सकता है. बशर्ते कि हम इसे अच्छी तरह से पहचानने लग जाये.
साभार: सुरेन्द्र दलाल