जल प्रबंधन
ड्रिप सिंचाई प्रणाली सिंचाई की लाभकारी प्रणाली
Submitted by Ashok Kumar on 15 September 2016 - 4:38pmड्रिप सिंचाई प्रणाली फसल को मुख्यश पंक्ति, उप पंक्ति तथा पार्श्व पंक्ति के तंत्र के उनकी लंबाईयों के अंतराल के साथ उत्सर्जन बिन्दु का उपयोग करके पानी वितरित करती है। प्रत्येक ड्रिपर/उत्सार्जक, मुहाना संयत, पानी व पोषक तत्वों तथा अन्यक वृद्धि के लिये आवश्यहक पद्धार्थों की विधिपूर्वक नियंत्रित कर एक समान निर्धारित मात्रा, सीधे पौधे की जड़ों में आपूर्ति करता है।
बौछारी (स्प्रिंकलर) सिंचाई तकनीक अपनाएं- भरपूज उपज पाएं
Submitted by Ashok Kumar on 29 December 2015 - 4:49pmबौछारी या स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई में पानी को छिड़काव के रूप में दिया जाता है। जिससे पानी पौधों पर वर्षा की बूंदों जैसी पड़ती हैं। पानी की बचत और उत्पादन की अधिक पैदावार के लिहाज से बौछारी सिंचाई प्रणाली अति उपयोगी और वैज्ञानिक तरीका मानी गई है। किसानों में सूक्ष्म सिंचाई के प्रति काफी उत्साह देखी गई है। इस सिंचाई तकनीक से कई फायदे हैं।
टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली
Submitted by Ashok Kumar on 4 August 2015 - 11:43amड्रिप प्रणाली सिंचाई की उन्नत विधि है, जिसके प्रयोग से सिंचाई जल की पर्याप्त बचत की जा सकती है। यह विधि मृदा के प्रकार, खेत के ढाल, जल के स्त्रोत और किसान की दक्षता के अनुसार अधिकतर फसलों के लिए अपनाई जा सकती हैं। ड्रिप विधि की सिंचाई दक्षता लगभग 80-90 प्रतिशत होती है। फसलों की पैदावार बढ़ने के साथ-सथ इस विधि से उपज की उच्च गुणवत्ता, रसायन एवं उर्वरकों का दक्ष उपयोग, जल के विक्षालन एवं अप्रवाह में कमी, खरपतवारों में कमी और जल की बचत सुनिश्चित की जा सकती है।
लुप्त होती पारम्परिक जल-प्रणालियाँ
Submitted by Ashok Kumar on 30 July 2015 - 4:54pmयह देश-दुनिया जब से है तब से पानी एक अनिवार्य जरूरत रही है और अल्प वर्षा, मरूस्थल, जैसी विषमताएँ प्रकृति में विद्यमान रही हैं- यह तो बीते दो सौ साल में ही हुआ कि लोग भूख या पानी के कारण अपने पुश्तैनी घरों-पिण्डों से पलायन कर गए। उसके पहले का समाज तो हर जल-विपदा का समाधान रखता था। अभी हमारे देखते-देखते ही घरों के आँगन, गाँव के पनघट व कस्बों के सार्वजनिक स्थानों से कुएँ गायब हुए हैं।
जल संरक्षण व संग्रहण सबसे जरूरी
Submitted by Ashok Kumar on 30 July 2015 - 4:40pmसामान्यतः कृषि लगभग पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा खेती पर आश्रित है। अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती की पैदावार है इसलिए जरूरी है कि संतुलित और समुचित रूप से मॉनसून की कृपा बनी रहे। लेकिन इस वर्ष बारिश औसत से कम है। यह जरूरी है कि भविष्य के लिए जलस्रोतों के बेहतर प्रबंधन के प्रयास किए जाएं।
कमजोर मानसून के अनेक कारण हैं। जिसमें प्रमुख रूप से ओजोन परत की भी मुख्य भूमिका हमें दिखाई देती है। थोड़े ही शब्द में ओजोन परत क्या है इसे भी जान लें- ऑक्सीजन के तीन अणु आपस में मिलकर ओजोन गैस का निर्माण करते हैं।
स्प्रिंकलर द्वारा सिंचाई
Submitted by Ashok Kumar on 29 July 2015 - 6:12pm• स्रिंकलर इरिगेशन सिस्टम में जल दबाव के साथ पाइपों में प्रवाहित होता है और बारिश की बून्दों की तरह खेत में स्प्रे होता है। इसे ‘ओवर हेड’ सिंचाई कहते हैं।
• विभिन्न प्रकार के स्प्रिंकलर सिस्टम प्रचलित हैं जैसे पोर्टेबल, सेमी-पोर्टेबल, सेमी-पर्मानेंट और पर्मानेंट। लेकिन बढ़ते श्रम और बिजली के लागत के कारण विभिन्न प्रकार के स्प्रिंकलर्स विकसित किए गए हैं।
राजस्थान के परंपरागत जलस्रोत
Submitted by Ashok Kumar on 29 July 2015 - 4:31pmटपक सिंचाई
Submitted by Ashok Kumar on 29 July 2015 - 4:24pmटपक सिंचाई या 'ड्रिप इर्रिगेशन' (Drip irrigation या trickle irrigation या micro irrigation या localized irrigation), सिंचाई की एक विशेष विधि है जिसमें पानी और खाद की बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूँद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नलियों तथा एमिटर का नेटवर्क लगाना पड़ता है। इसे 'टपक सिंचाई' या 'बूँद-बूँद सिंचाई' भी कहते हैं।