जल प्रबंधन

जल प्रबंधन क्या है?

जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग की संभावना हो। पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में। वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है।

ड्रिप सिंचाई प्रणाली सिंचाई की लाभकारी प्रणाली

ड्रिप सिंचाई प्रणाली फसल को मुख्यश पंक्ति, उप पंक्ति तथा पार्श्व पंक्ति के तंत्र के उनकी लंबाईयों के अंतराल के साथ उत्सर्जन बिन्दु का उपयोग करके पानी वितरित करती है। प्रत्येक ड्रिपर/उत्सार्जक, मुहाना संयत, पानी व पोषक तत्वों तथा अन्यक वृद्धि के लिये आवश्यहक पद्धार्थों की विधिपूर्वक नियंत्रित कर एक समान निर्धारित मात्रा, सीधे पौधे की जड़ों में आपूर्ति करता है।

Drip Irrigation, Saving water, Agriculture

बौछारी (स्प्रिंकलर) सिंचाई तकनीक अपनाएं- भरपूज उपज पाएं

बौछारी  या स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई में पानी को छिड़काव के रूप में दिया जाता है। जिससे पानी पौधों पर वर्षा की बूंदों जैसी  पड़ती हैं। पानी की बचत और उत्पादन की अधिक पैदावार के लिहाज से बौछारी सिंचाई प्रणाली अति उपयोगी और वैज्ञानिक तरीका मानी गई है। किसानों में सूक्ष्म सिंचाई के प्रति  काफी उत्साह देखी गई है। इस सिंचाई  तकनीक से कई फायदे हैं।

टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली

ड्रिप प्रणाली सिंचाई की उन्नत विधि है, जिसके प्रयोग से सिंचाई जल की पर्याप्त बचत की जा सकती है। यह विधि मृदा के प्रकार, खेत के ढाल, जल के स्त्रोत और किसान की दक्षता के अनुसार अधिकतर फसलों के लिए अपनाई जा सकती हैं। ड्रिप विधि की सिंचाई दक्षता लगभग 80-90 प्रतिशत होती है। फसलों की पैदावार बढ़ने के साथ-सथ इस विधि से उपज की उच्च गुणवत्ता, रसायन एवं उर्वरकों का दक्ष उपयोग, जल के विक्षालन एवं अप्रवाह में कमी, खरपतवारों में कमी और जल की बचत सुनिश्चित की जा सकती है।

लुप्त होती पारम्परिक जल-प्रणालियाँ

यह देश-दुनिया जब से है तब से पानी एक अनिवार्य जरूरत रही है और अल्प वर्षा, मरूस्थल, जैसी विषमताएँ प्रकृति में विद्यमान रही हैं- यह तो बीते दो सौ साल में ही हुआ कि लोग भूख या पानी के कारण अपने पुश्तैनी घरों-पिण्डों से पलायन कर गए। उसके पहले का समाज तो हर जल-विपदा का समाधान रखता था। अभी हमारे देखते-देखते ही घरों के आँगन, गाँव के पनघट व कस्बों के सार्वजनिक स्थानों से कुएँ गायब हुए हैं। 

जल संरक्षण व संग्रहण सबसे जरूरी

सामान्यतः कृषि लगभग पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा खेती पर आश्रित है। अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती की पैदावार है इसलिए जरूरी है कि संतुलित और समुचित रूप से मॉनसून की कृपा बनी रहे। लेकिन इस वर्ष बारिश औसत से कम है। यह जरूरी है कि भविष्य के लिए जलस्रोतों के बेहतर प्रबंधन के प्रयास किए जाएं।

कमजोर मानसून के अनेक कारण हैं। जिसमें प्रमुख रूप से ओजोन परत की भी मुख्य भूमिका हमें दिखाई देती है। थोड़े ही शब्द में ओजोन परत क्या है इसे भी जान लें- ऑक्सीजन के तीन अणु आपस में मिलकर ओजोन गैस का निर्माण करते हैं। 

स्प्रिंकलर द्वारा सिंचाई

• स्रिंकलर इरिगेशन सिस्टम में जल दबाव के साथ पाइपों में प्रवाहित होता है और बारिश की बून्दों की तरह खेत में स्प्रे होता है। इसे ‘ओवर हेड’ सिंचाई कहते हैं। 

• विभिन्न प्रकार के स्प्रिंकलर सिस्टम प्रचलित हैं जैसे पोर्टेबल, सेमी-पोर्टेबल, सेमी-पर्मानेंट और पर्मानेंट। लेकिन बढ़ते श्रम और बिजली के लागत के कारण विभिन्न प्रकार के स्प्रिंकलर्स विकसित किए गए हैं। 

टपक सिंचाई

टपक सिंचाई या 'ड्रिप इर्रिगेशन' (Drip irrigation या trickle irrigation या micro irrigation या localized irrigation), सिंचाई की एक विशेष विधि है जिसमें पानी और खाद की बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूँद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नलियों तथा एमिटर का नेटवर्क लगाना पड़ता है। इसे 'टपक सिंचाई' या 'बूँद-बूँद सिंचाई' भी कहते हैं।

जल संरक्षण के आसान उपाय

राष्ट्रीय विकास में जल की महत्ता को देखते हुए अब हमें `जल संरक्षण´ को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर पूरे देश में कारगर जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है। `जल संरक्षण´ के कुछ परंपरागत उपाय तो बेहद सरल और कारगर रहे हैं। जिन्हें हम, जाने क्यों, विकास और फैशन की अंधी दौड़ में भूल बैठे हैं।

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