गोबर गैस संयंत्र – ऊर्जा का खजाना, खाद का कारखाना

Biogas

प्राकर्तिक रूप से प्राणियों के मृत शरीर एवं वनस्पति विघटित होकर सेंद्रिय खाद के रूप में मिट्टी में मिल जाते है. विघटन की यह प्रक्रिया सूक्ष्म जीवाणुओं, बेक्टीरिया, फफूंद (फंगस) आदि के द्वारा की जाती है. इस विघटन की प्रक्रिया में गैस का निर्माण भी होता है. इस गैस को बायोगैस कहते है. यह विघटन वायु रहित एवं वायु सहित दोनों अवस्थाओं में होता है.

वायु रहित अवस्था में सेंद्रिय पदार्थो से जो गैस पैदा होती है. उसमें 50 से 55 प्रतिशत तक मीथेन गैस होती है. 30 से 45 प्रतिशत तक कार्बन डाईआक्साइड गैस तथा अल्प मात्रा में नाइट्रोजन, हाइड्रोजन सल्फाइड, ऑक्सीजन आदि गैस होती है. भारत में प्रथम बार सन 1900 में माटुंगा, मुंबई स्थित लेप्रेसी असायलम द्वारा एक संयंत्र स्थपित कर मल से बायोगैस की उत्पत्ति की. बाद में गोबर पर आधारित गोबर गैस संयंत्र बनाने की तकनीकें विकसित की गई. इनमें दो संयंत्र लोकप्रिय हुए –

  1. फ्लोटिंगड्रम मॉडल या के.वी.आई.सी. मॉडल
  2. दीन बन्धु मॉडल या फिक्स डोम मॉडल 

इन दोनों संयंत्र से प्राप्त मीथेन गैस गंघ रहित नीले रंग की ज्वाला से प्रज्वलित होकर पर्याप्त ऊर्जा देती है जिससे की रसोई पर धुआं रहित होकर सामान्य समय से आधे में भोजन पकाया जा सकता है | भोजन पकाने के अतिरिक्त गैस से निम्न कार्य भी लिए जा सकते है-

1. रात में प्रकाश के लिए.

2. डीजल इंजन  चलाने के लिए गैस का प्रयोग करके 80-85 प्रतिशत डीजल की बचत की जा सकती है | डीजल इंजन से पानी के पम्पसेट, कुट्टी मशीन, आटा(पीसने की) चक्की आदि भी चलाये जा सकते है |

3. बिजली उत्पादन के लिए

4. उन सभी कार्यो में जहाँ ऊर्जा की आवश्यकता होती है जैसे वेल्डिंग आदि | 

 

जैविक खेती: