जीवाणु खाद मिट्टी के लिये वरदान
(किसान जागरूकता कार्यक्रम में राधा कान्त जी के विचारो के अंश)
पौधों की उचित वृद्धि एवं ज्यादा उपज के लिये नाइट्रोजन, स्फूर, पोटाश तथा अन्य पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । यह पोषक तत्व रासायनिक खाद द्वारा पौधों को उपलब्ध कराये जाते हैं । मिट्टी में कुछ ऐसे भी सूक्ष्मजीवी जीवाणु है जो पौधों को मिट्टी में डाले गये पोषक तत्वों को उपलब्ध कराने में मदद करते हैं । जब ऐसे जीवाणुओं की संख्या प्रयोगशाला में बढ़ा कर ठोस माध्यम में मिश्रित कर पैकेट के रूप में किसानों को उपलब्ध कराये जायें तो उसे ''जीवाणु खाद'' कहते हैं ।
जैसे दलहनी फसलों के लिये राइजोबियम कल्चर, सब्जियों के लिये ऐजोटोबैक्टर एवं धान के लिये ब्लू ग्रीन अल्गी कल्चर पैकेट में किसानों के लिये तैयार किये जा रहे है ।
आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक द्वारा जीवाणुओं की संख्या प्रयोगशाला में बढ़ा कर कल्चर के रूप में देना सम्भव हो गया है। जीवाणु खाद में हवा से नेत्रजन लेने वाले जीवाणु काफी संख्या में रहते हैं । इसे फसल की अच्छी उपज के लिये बीज को उपचारित करने के कार्य में प्रयोग करते है ।
जीवाणु खाद का प्रयोग
1. पौधों को नेत्रजन हवा से प्राप्त होता है ।
2. रासायनिक नेत्रजन खाद की बचत होती है ।
3. उपज में 15 से 20 प्रतिशत वृद्धि होती है ।
4. भूमि की उर्वरता में विकास होता है ।
5. दलहनी फसल के बाद अन्य दूसरी फसलों को भी नेत्रजन प्राप्त होता है ।
बीज उपचारित करने की विधि
1. बोने के पहले 100 ग्राम गुड़ आधा लीटर पानी में डाल कर पन्द्रह मिनट तक उबालें।
2. यदि गुड़ न हो तो गोंद या माड़ का भी प्रयोग किया जा सकता है ।
3. अच्छी तरह ठंडा होने पर इस घोल में एक पैकेट राईजोबियम कल्चर को
डाल दें और अच्छी तरह मिला दें ।
4. आधे एकड़ के लिये प्रर्याप्त बीज को पानी से धोकर कल्चर के घोल में
डालकर साफ हाथों से अच्छी तरह मिला दें ।
5. इसे अखबार या साफ कपड़े पर छाया में आधा घंटा तक सूखने दें इसके बाद उपचारित बीज की बोआई कर दें ।
6. यदि चूने की परत (पैलेटिंग) करना हो तो कल्चर लगे बीज पर बारीक पिसे हुआ चूने को छिड़क कर मिला दें ताकि हर बीज पर इसकी परत जम जाये ।
सावधानियाँ
1. कल्चर को धूप से बचायें ।
2. कल्चर जिस फसल का हो उसका प्रयोग उसी फसल के बीज के लिये करें ।
3. कल्चर का प्रयोग पैकेट पर लिखी अवधि तक अवश्य कर लें । इस अवधि तक इसे ठंडे स्थान पर रखें ।
4. उपचारित बीज की बोआई शीध्र कर दें ।
5. कल्चर की क्षमता बढ़ाने के लिये फास्फेट खाद की पूरी मात्रा मिट्टी में अवश्य मिलायें|
जीवाणु खाद को प्रभावशाली ढंग से काम करने के लिये इन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है
1. मिट्टी में फास्फेट खाद की उपयुक्त मात्रा (40 से 80 कि. गाम प्रति हेक्टर) डालना चाहिए।
2. यदि मिट्टी आम्लिक हो तो उस में चूने का व्यवहार अवश्य करना चाहिये अन्यथा राईजोबियम जीवाणु पनप नहीं पायेगें ।
3. यदि किसी कारण वश अम्लीय मिट्टी में चूना न डाला जा सके तो बीज को उपचारित कर उसपर चूने की परत चढ़ानी चाहिये । इस क्रिया को पैलेटिंग कहते हैं । चूने की परत से बीज पर लगे जीवाणुओं की अम्लीय अवस्था में रक्षा होती है ।
4. खेत में जैविक खाद जैसे कम्पोस्ट अथवा सड़े गोबर की खाद देने से राईजोबियम जीवाणुओं की प्रक्रिया में तेजी होती है ।
5.जीवाणु खाद को कारगर ढंग से कार्य करने के लिये खेत में नमी का होना आवश्यक है।
जीवाणु खाद से लाभ जीवाणु खाद के प्रयोग से किसान दो तरह से लाभान्वित होते हैं पहला, रासायनिक खाद जैसे यूरिया या अमोनियम सल्फेट की दो तिहाई मात्रा की बचत करके और दूसरा उपज में (15-25%) अतिरिक्त वृद्धि करके ।
उदाहरण के तौर पर यदि किसान दलहनी फसल की खेती करता है तो उसके लिये प्रति हेक्टर 50 कि.ग्रा. नेत्रजन की आवश्यकता पड़ेगी जो यूरिया के रूप में डालने पर 110 कि.ग्रा. की जरूरत होगी अगर किसान राईजोबियम कल्चर का प्रयोग करता है तो यूरिया की सिर्फ एक तिहाई मात्रा की आवश्यकता होती है अर्थात् 36 कि.ग्रा. या दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि वह 75 कि. ग्राम. यूरिया प्रति हे0 की बचत करता है । जिसका मूल्य 200 रूपया होता है । दूसरी तरफ इसके बदले में उसे 25 रूपया/हेक्टर कल्चर पर खर्च करना होगा । अतः उर्वरक के रूप में उसे लगभग 175 रूपया प्रति हेक्टर का शुद्ध लाभ होगा । इसके अतिरिक्त कल्चर के प्रयोग से यदि उसे केवल 2 क्विंटल प्रति हेक्टर की अतिरिक्त उपज मिलती है तो उसे 800 रूपया प्रति क्विंटल की दर से 1600 रूपया बचत होता है । दोनो ओर से मिलाकर किसान को 1775 रूपया प्रति हेक्टर की बचत अवश्य होती है ।