कृषि में गोमूत्र और गोबर का महत्व
भारत में और भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में गाय का महत्व मुख्य रूप से दूध और दूध से बने अन्य व्यंजनों के लिए किया जाता है। किन्तु, गाय के मूत्र और गोबर का महत्व कुछ कम नहीं है। हम सभी कृषि में खाद के उपयोग और महत्व को भली-भांति परिचित हैं। अच्छी फसल के लिए केंचुए की खाद, सड़ी-गली पत्तियों की खाद, रासायनिक खाद आदि इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त गोमूत्र और गोबर उत्तम उर्वरक के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
प्राकृतिक उर्वरक
गोमूत्र और गोबर सर्वश्रेष्ठ उर्वरक हैं, क्योंकि रासायनिक उर्वरक जहाॅं एक ओर फसलोत्पादन में वृद्धि करते हैं, वहीं खाद्य पदार्थों में और भूमि में पहुॅंच कर उन्हें विषाक्त भी कर देते हैं। किन्तु, गोमूत्र और गोबर का उर्वरक के रूप में प्रयोग जहां एक ओर खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है, वहीं भूमि की गुणवत्ता भी बनाए रखता है। और तो और, खाद्य पदार्थ स्वादिष्ट और स्वास्थ्यकर भी होते हैं। गोमूत्र और गोबर चूॅंकि पर्याप्त मात्रा में कृषकों को सुलभ रहते हैं, इसलिए उन्हें किसी अन्य उर्वरक पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।
जमीन को मिलती उर्वरता
अब कृषि विज्ञानी एकमत हैं कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से भूमि की गुणवत्ता नष्ट हो जाती है और ऐसी भूमि उर्वरा शक्ति के अभाव में खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाती है। किन्तु, ऐसी भूमियों में यदि गोबर और गोमूत्र का प्रयोग किया जाए तो फसल के लिए उपयोगी जीवाणुओं (बैक्टीरिया) में वृद्धि होती है और भूमि की गुणवत्ता भी बनी रहती है। यही नहीं भूमि की जल ग्रहण और पानी को रोके रखने की क्षमता में भी वृद्धि होती है। इस कारण सिंचाई कम करनी पड़ती है। इसी प्रकार बारिश के पानी को भी रोकने की शक्ति बढ़ जाती है। और तो और, खेतों एवं गांवों के खर-पतवार और कूड़े-कचरे का उपयोग होता है और उसके प्राकृतिक चक्र में आने से पर्यावरण भी दूषित नहीं होता है।
पर्यावरण संरक्षण
इस प्रकार की कृषि के अनेक लाभ हैं। कृषकों को काम मिलता है, बैलों को काम मिलता है, बेरोजगारी की समस्या कम होती है, गांवों से शहरों का काम के लिए पलायन रूकता है, किसानों को अपने ऊपर निर्भर रहने के कारण कृषि को मजबूत आधार मिलता है। पर्यावरण में सुधार होता है, विदेशी मुद्रा की बचत होती है और देश समृद्धि की ओर आगे बढ़ता है।
गाय के गोबर और गोमूत्र से बनाए गए जलावन के उपलों (कंडों) की राख में दो गुण पाए जाते हैं। एक तो यह दुर्गंध दूर करता है और दूसरे कीटनाशक भी है। इसलिए कृषक अपने खेतों में खाद और कीटनाशक के रूप में इसका उपयोग करते हैं। खीरा वर्ग (कुकुरविटेसी कुल) के पौधों पर राख का छिड़काव किया जाता है। इसके लिए एक विशेष किन्तु सरल विधि का उपयोग किया जाता है।
क्या है गौमूत्र
गोमूत्र में नाइट्रोजन, गंधक, अमोनिया, तांबा, यूरिया, यूरिक एसिड, फास्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीज, कार्बोलिक एसिड आदि पाए जाते हैं। उपरोक्त के अलावा लवण, विटामिन, ए,बी,सी,डी,ई, हिप्युरिक एसिड, क्रियाटिनिन, स्वर्ण क्षार पाए जाते हैं।
बेहतर कीट नियंत्रक
गोमूत्र के अनेक उपयोग हैं। देसी गायों (भारतीय मूल की) के एक लीटर मूत्र को एकत्र कर इसमें 40 लीटर पानी मिलाकर यदि खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, सब्जी आदि के बीजों को 4-6 घंटे उपरोक्त घोल में भिगोने के बाद खेत में बोने के लिए डाला जाता है तो ऐसे बीजों का जमाव शीघ्र होता है, अंकुरण बढ़िया तो होता ही है, पौधा मजबूत और निरोग भी होता है।
गोमूत्र के विविध उपयोग हैं। यह फसल को सुरक्षा रसायन के रूप में अनेक प्रकार से और कई तरह के कीटों से बचाता है। कीटों के नियंत्रण के लिए 2-3 लीटर गोमूत्र को नीम की पत्तियों के साथ बंद डिब्बों में 15 दिनों तक रखकर सड़ाते हैं। सड़ने के बाद इसे छान लेते हैं और छाने हुए द्रव के 1 लीटर दवा में 50 लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से अनेक प्रकार के कीटों से फसल की सुरक्षा हो जाती है। उदाहरण के लिए पत्ती खाने वाला कीट, फल छेदने वाला कीट तथा छेदक कीट आदि।
इसी प्रकार गोमूत्र एवं तम्बाकू की सहायता से भी कीटनाशक तैयार किया जाता है। इसक लिए 10 लीटर गोमूत्र में एक किलो तम्बाकू की सूखी पत्तियों को डालकर उसमें 250 ग्राम नीला थोथा घोलकर 20 दिनों तक बंद डिब्बों में रख देते हैं। फिर इसे निकालकर 1 लीटर दवा में 100 लीटर पानी मिलाकर घोल का छिड़काव करने से फसल का बालदार सूंडी से बचाव हो जाता है। इसका छिड़काव दोपहर में करना चाहिए।
गोमूत्र और लहसुन की गंध के साथ कीटनाशक बनाकर रस चूसने वाले कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए 10 लीटर गोमूत्र में 500 ग्राम लहसुन कूटकर उसमें 50 मिलीलीटर मिट्टी का तेल मिला देते हैं। मिट्टी के तेल और लहसुन के पेस्ट को गोमूत्र में डालकर 24 घंटे वैसे ही पड़ा रहने देते हैं। इसे बाद इसमें 100 ग्राम साबुन अच्छी तरह मिलाकर और हिलाकर महीन कपड़े से छान लेते हैं। एक लीटर इस दवा को 80 लीटर पानी में घोलकर, इस घोल के छिड़काव से फसल को चूसक कीटों से सुरक्षित रखा जा सकता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अलग-अलग फसलों और अलग-अलग कीटों के लिए अलग-अलग तरह की दवाएं बनाई जाती हैं। किन्तु, गोमूत्र और कुछ वनस्पतियों की सहायता एक ऐसे उत्तम किस्म की दवा तैयार की जाती है जो कई तरह की फसलों, कई तरह के कीटों और फसलों के कई तरह के रोगों में उपयोगी होता है। इस विशेष प्रकार के कीटनाशक के घोल के छिड़काव से कीटों, रोगों के अतिरिक्त नील गायों और जंगली जानवरों से भी फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
कैसे बनाएं कीटनाशक
इस दवा को बनाने के लिए 20 लीटर गोमूत्र को देशी और वृद्ध गायों से एकत्र करके प्लास्टिक के बड़े डिब्बे अथवा ड्रम में डालकर उसमें 5 किलोग्राम नीम की ताजी तोड़ी गई पत्तियों को ड्रम में डाल देते हैं। इसके बाद दो किलोग्राम धतूरा पंचांग अर्थात धतूरे की जड़, पत्ती, फूल, फल आदि डाल देना चाहिए। किन्तु, ध्यान रहे कि धतूरा पंचांग पहले सुखाकर रखना चाहिए और सूखा डालना चाहिए। फिर दो किलोग्राम मदार जो मदार पंचांग या पत्ती को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर डालने के बाद 500 ग्राम लहसुन को कूटर कर डाल देना चाहिए। लहसुन के बाद 250 ग्राम तम्बाकू की पत्तियों को डालें और अंत में 250 ग्राम लाल मिर्च पाउडर डाल देते हैं। राख या पाउडर को डिब्बों में किसी लकड़ी से हिलाकर बंद कर देते हैं। बंद डिब्बे को खुले में रख देते हैं। दिन में धूप पड़ती है और रात में ओस। यह प्रक्रिया 40 दिनों में पूरी हो जाती है। इस डिब्बे में बंद राख सड़ जाती है। 40 दिनों बाद कपड़े की सहायता से इसे छान लेते हैं, क्योंकि सड़ने के बाद गीला हो जाता है। छानने के बाद द्रव को तो फसल पर प्रयोग करने से यह रसायन की भांति फसल को सुरक्षा प्रदान करती है और छानने के बाद जो सूखा पदार्थ बचता है, उसे दीमक के नियंत्रण के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।
फसल पर प्रभाव
इस्तेमाल के पूर्व छने द्रव के एक लीटर रसायन को 80 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए। इसके अनेक लाभ हैं। यह फसल को कुतर कर या काटकर खाने वाले, फसल की पत्तियों में छेद करने वाले या उसका रस चूसने वाले कीड़ों से बचाव तो करता ही है, फसल को नीलगायों, जंगली भैंसों या जंगली सांडों से भी सुरक्षित रखता है और ये फसल को हानि नहीं पहुॅंचा पाते हैं।
गोमूत्र कीटनाशक से फसलों को नाइट्रोजन जैसे पोषक पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। छिड़काव में भी कम मात्रा का उपयोग करना पड़ता है। छिड़काव से फसल लहलहाने लगती है। रोगों का प्रकोप कम होता है और सामग्री के लिए शहर नहीं जाना पड़ता, क्योंकि यह गांवों में ही आसानी से मिल जाती है।
इस दवा का प्रयोग मक्का, तम्बाकू, कपास, टमाटर, दलहन, गेंहू, धान, सूरजमुखी, केला, भिंडी, गन्ना आदि पर किया जा सकता है और सफलता भी प्राप्त होती है। इसका प्रयोग स्थानीय स्तर पर पाए जाने वाले औषधीय पादपों पर भी किया जा सकता है। इस प्रकार गोमूत्र और गोबर से न केवल गांवों की आर्थिक दशा सुधारी जा सकती है, बल्कि देश में भी खुशहाली लाई जा सकती है।
(साभार:www.paryavaranurjatimes.com)