आयातित केंचुआ या देसी केंचुआ?

आयातित केंचुआ या देसी केंचुआ?

वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल किये जाने वाले आयातित केंचुओं को भूमि के उपजाऊपन के लिये हानिकारक मानने वाले श्री पालेकर बताते है कि दरअसल इनमें देसी केचुओं का एक भी लक्षण दिखाई नहीं देता। आयात किया गया यह जीव केंचुआ न होकर आयसेनिया फिटिडा नामक जन्तु है, जो भूमि पर स्थित काष्ट पदार्थ और गोबर को खाता है। जबकि हमारे यहां पाया जाने वाला देशी केंचुआ मिट्टी एवं इसके साथ जमीन में मौजूद कीटाणु एवं जीवाणु जो फसलों एवं पेड़- पौधों को नुकसान पहुंचाते है, उन्हें खाकर खाद में रूपान्तरित करता है। साथ ही जमीन में अंदर बाहर ऊपर नीचे होता रहता है, जिससे भूमि में असंख्यक छिद्र होते हैं, जिससे वायु का स

जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है?

जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है।जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती ह

फ्लोरीकल्चर रोजगार का अवसर

फ्लोरीकल्चर रोजगार का अवसर

किसी भी पार्टी, कान्फ्रेंस या फिर मीटिंग में जाएं,  वहां आज केटरिंग के बाद सबसे ज्यादा ध्यान फूलों की डेकोरेशन पर ही दिया जाता है। इन्हीं सब कारणों से फूलों से उत्पादन में खासा इजाफा देखने को मिल रहा है। फूल उगाने की इस प्रक्रिया को फ्लोरीकल्चर के नाम से जाना जाता है। यदि आपको भी फूलों से प्यार है और आप भी इस क्षेत्र में अपना भविष्य संवारना चाहते हैं, तो फिर इस दिशा में उपलब्ध र्कोस आपको सफलता के शिखर तक पंहुचा सकते हैं…

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