जैविक खेती के लिए नाडेप कम्पोस्ट खाद और अमृत जल बनाने की विधिया

जैविक खेती सस्ती तो है ही , जीवन और जमीन को बचाने के लिए भी जरुरी है | 1960 से 1990 तक कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए जिस तेजी से और जिस तरह रासायनिक खादों और कीटनाशको का इस्तेमाल किया गया है उसने हमारे खेतो और जीवन दोनों को संकट में डाल दिया है | तब पर्यावरण की अनदेखी की गयी थी जिसकी कीमत हम आज चूका रहे है |

1990 के बाद से जैविक खाद की ओर लौटने का अभियान शुरू हुआ , जो अब भी जारी है | द्वितीय हरित क्रांति में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है और किसानो को इसके लिएतैयार किया जा रहा है | किसान भी जैविक खाद और कीटनाशक बनाने में अपने अनुभव से कृषि वैज्ञानिक तक को मात दे रहे है | जैविक खेती हर दृष्टि से सुरक्षित और ज्यादा मुनाफा देने वाली है |

सस्ती खाद करे इस्तेमाल

जैविक खेती में जैविक खाद और जैविक कीटनाशको का इस्तेमाल होता है | भारतीय किसानो के लिए यह कोई नया विषय नही है | यह जरुर है कि रासायनिक खाद और कीटनाशको के प्रयोग को लेकर चले अभियान ने जैविक किसानो को कुछ समय के लिए अपने उपर निर्भर बना दिया है जबकि एक बार अधिकतर किसान सस्ती और नुकसानदायक खेती की ओर बढ़ रहे है | इस अन्तराल में जैविक खेती को लेकर कई नये प्रयोग हुये है जो खेती के लाभ के दायरे को बढाते है |रासायनिक और महंगी खाद की जगह हम इन खादों का इस्तेमाल कर सस्ती , टिकाऊ और स्वस्थ खेती का लाभ ले सकते है |

पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बहे बेहतर

रासायनिक कीटनाशक की जगह आप जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल करे | यह सस्ता भी है और स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है | यह पर्यावरण को नुकसान नही पहुचाता है और जीवो को भी क्षति पहुचता है | इसमें गौमूत्र , नीम पत्ती का घोल , खली , मट्ठा ,मिर्च ,लहसुन ,लकड़ी की राख ,नीम एवं करंज खली आदि का इस्तेमाल किया जाता है |

नाडेप कम्पोस्ट बनाने की विधि

नाडेप विधि से कम्पोस्ट बनाने की विधि अब काफी लोकप्रिय ओ चुकी है | इस विधि से खोज किसान नारायण राव पांडेरी पांडे उर्फ़ नाडेप काका ने की है इसलिए इस विधि को नाडेप विधि और इससे तैयार खाद को नाडेप कम्पोस्ट कहते है |

नाड़ेप कम्पोस्ट बनाने की पहली विधि

इस विधि से खाद बनाने के लिए पहले गड्डा बनाये | उसकी दीवार इंट से तैयार के | पहली दो पंक्ति की जुड़ाई के बाद हर इंट के बीच करीब सात इंच का छेद करे | गड्डे की दीवार और फर्श को गोबर और मिटटी के घोल से लीपे | अब इसमें 60 प्रतिशत वानस्पतिक पदार्थ और 40 प्रतिशत हरा चारा डाले | इसमें कार्बन एवं नत्रजन का अनुपात बना रहता है | दीमक से बचाव के लिए नीम की पत्तिया डाले | खाद खाद की गुणवत्ता को बढाने के लिए इसमें गौमूत्र से भीगे पुआल और खरपतवार इस्तेमाल करे ताकि जल्दी खाद तैयार हो | इसके लिए आप गोबर की जगह स्लरी घोल का इस्तेमाल करे |

नाड़ेप कम्पोस्ट बनाने की दुसरी  विधि

कच्चे या बांस के कम्पोस्ट ड्रम में भी बना सकते है | गड्ढे की तरह इसका भी आकार प्रकार निश्चित अनुपात में रखे जैसे 12 फीट लम्बा , 5 फीट और तीन फीट ऊँचा या छ: फीट लम्बा , छ फीट चौड़ा एवं तीन फीट ऊँचा गड्डा तैयार करके इसमें 2.5 टन से ज्यादा खाद प्राप्त हो सकती है | ड्रम की दीवार और फर्श के गोबर और मिटटी में लीप | ड्रम या गड्डे जो भी चुना है उसमे नमी रहनी चाहिए | इसके लिए आप उसमे बाहर से पानी भी डाल सकते है |

ड्रम या गड्डे को भरने के लिए आप 1400-1500 किलोग्राम वानस्पतिक पदार्थ जैसे सूखे पत्ते ,छिलके ,डंठल ,भूसा आदि ले | उस पर 8-10 प्रतिशत टोकरी गोबर डाले | अगर बायोगैस प्लांट का स्लरी मिले तो ज्यादा अच्छा | उसमे सड़ी मिटटी मिलाये |साथ ही 1750 किलो गौमूत्र और 1500 से 2000 लीटर पानी डाले |

ड्रम या गड्डे को भरने से पहले उसकी दीवार या फर्श पर गोबर पानी का घोल छिडके या उसमे लीप दे | 3-4 प्रतिशत नीम या पलाश की हरी पत्ती मिलाये | दो -तीन दिन बाद टिन के डब्बे या अन्य किसी वस्तु की मदद से ड्रम की दीवार पर 9-9 इंच की दूरी पर 7-8 इंच गहरे छेद बनाय ताकि ड्रम में हवा के लिए रास्ता बन सके | 90 से 120 दिन में यह खाद तैयार हो जाती है खाद में 15 से 20 प्रतिशत नमी रखे |

अमृत जल बनाने की विधि

जमीन जोतने से पूर्व अमृत जल का प्रयोग करने से उपज के लिए आवश्यक एवं उपयोगी जीवन जमीन में पनपते है | अमृत जल बनाने की विधि अत्यंत सरल है |  20 किलो गोबर , 5 से 10 लीटर गौमूत्र  , एक किलो बेसन , एक किलो काला गुड आदि 200 लीटर पानी में आठ दिन तक भिगोकर रखे | यह 200 लीटर अमृत जल एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता है |गोबर एम् गौमूत्र देसी गाय का होने से अधिक प्रभाव देखा गया है |

केवल गौमूत्र को भी कीटनाशक के रूप में उपयोग लिया जा सकत अहि छिडकने से पहले गौमूत्र को तरल किया जाता है देसी गया के एक लीटर गौमूत्र को आठ लीटर पानी में मिलाकर उपयोग किया जाता है गौमूत्र के साथ नैसर्गिक यूरिया भी मिलने से कीटनाशक के साथ ही खाद के रूप में छिडकाव उपयोगी होता है | गौमूत्र के साथ नीम का तेल उपयोग करने से भी कीट को भगाया जा सकता है | 2 लीटर गौमूत्र में 14 लीटर पानी और 50 ग्राम नीम का तेल मिलाकर छिडकाव किया जा सकता है |

इन उपायों के अलावा कुछ किसानो ने लहसुन ,मिर्च के द्वारा भी कीटनाशक के रूप में प्रयोग करते है तम्बाकू के पानी का छिडकाव कीटनाशक के रूप में तथा बचे तम्बाकू के थोथे का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है केवल गौमूत्र गोबर से लभगग बिना लागत की जैविक कृषि के द्वारा उत्पादन में स्थायी वृधि कर लाभ की खेती की जा सकती है इन सब उपायों के साथ संकरित तथा रासायनिक प्रक्रिया से प्र्स्नस्न्स्कारित बीजो के स्थान पर स्वयं की उपज से सुरक्षित बीजो का प्रयोग अधिक लाभकारी होता है |

साभार: http://gajabkhabar.com/

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