जीवाणु खाद: पोषक तत्व प्रबंधन का एक सस्ता एवं उत्तम स्रोत

Culture Fertilizer

फसल उत्पादन मे पोषक तत्वों का महत्वपूर्ण स्थान है, इनकी आपूर्ति के लिए रासायनिक उर्वरक, देसी खाद, जीवाणु खाद, कम्पोस्ट आदि का उपयोग मुख्य रूप से किया जाता है ι उर्वरको की बढ़ती कीमतें, माँग एवं पूर्ति के बीच का अंतर, छोटे व सीमान्त किसानो की सीमित क्रय शक्ति एवं ऊर्जा की कमी

जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं के कारण आवश्यक है कि पादप पोषण के कुछ ऐसे सार्थक एवं सस्ते वैकल्पिक स्त्रोत हो जो सस्ता होने के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषक भी न हो, ऐसे मे जीवाणु खाद को नकारा नहीं जा सकता है ι

आज पूरे विश्व मे जैविक खेती को रासायनिक खेती का विकल्प माना जा रहा है ι साठ के दशक मे हरित क्रांति के फलस्वरूप अन्न उत्पादन मे देश आत्मनिर्भर हुआ परन्तु इसके दुष्परिणाम भी सामने आये जैसे मृदा मे कार्बनिक पदार्थों कि मात्रा मे कमी, मृदा क्षारियता, मृदा उर्वरता मे गिरावट, रसायनो के अवशेष के फलस्वरूप मृदा, जल एवं वायु प्रदूषण तथा मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव ι इन सभी समस्याओ से छुटकारा पाने का एक मात्र उपाय जैविक खेती ही है ι जैविक खेती मे पोषक तत्व प्रबंधन करने के लिए किसानो को विभिन्न प्रकार की जैविक खेती (केंचुआ खाद, गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, फसल अवशेष आधारित खाद ) तथा जीवाणु खाद का प्रयोग अति आवश्यक हो जाता है जिससे फसल उत्पादन तथा उत्पादकता मे गिरावट न हो तथा मृदा की उर्वरा शक्ति बनी रहे ι

     पादप पोषण मे नत्रजन एवं फास्फोरस दो महत्वपूर्ण पोषक तत्व है ι नत्रजन वायुमंडल मे प्रचुर मात्रा मे (लगभग 79 प्रतिशत ) उपलब्ध है परन्तु पौधे इसका उपयोग तभी कर सकते है जब इस नत्रजन को पौधो के उपयोगी स्वरूप मे बदल दिया जाए जो कि रासायनिक क्रियाओ द्वारा या विशिष्ट तरह के सूक्ष्म जीवाणुओ द्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता हैι नत्रजन के बाद फास्फोरस दूसरा प्रमुख पादप पोषक तत्व है जिसकी आपूर्ति हेतु पृथ्वी के गर्भ मे उपलब्ध सीमित स्त्रोतों का खनन कर प्राप्त रॉक फास्फेट से फास्फोरस युक्त उर्वरको का निर्माण किया जाता है ι फास्फोरस उर्वरको की उपयोग दक्षता बहुत ही कम होती है क्योकि मृदा मे फास्फोरस अचल रूप मे होता है और क्रिया के फलस्वरूप स्थिर हो जाता है ι

        भारतीय कृषि मे जीवाणु खाद का महत्वपूर्ण स्थान है एवं इनका अधिक से अधिक मात्रा मे प्रयोग कर उर्वरको की खपत कम की जा सकती है, पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है ι फसल उत्पादन मे लागत मे कमी की जा सकती है एवं फास्फोरस उर्वरको की उपयोग क्षमता बढ़ाई जा सकती है ι बैक्टेरिया, कवक, नीलहरित शैवाल इत्यादि के सक्रिय प्रभावी विभेद की पर्याप्त  संख्याओ के उत्पाद को मुख्यतया जीवाणु खाद कहते है ι जीवाणु खाद मृदा मे मौजूद लाभकारी सूक्ष्म जीवों का वैज्ञानिक तरिकों से चुनाव कर प्रयोगशालाओ मे तैयार की जाती है ι वायुमंडल के नत्रजन व भूमि के फास्फोरस को पौधो को उपलब्ध कराने वाले जीवाणुओ को जीवित अवस्था मे लिग्नाइट व कोयले के चुरे मे मिलाकर जीवाणु खाद तैयार किया जाता है ι जीवाणु खाद मे इन लाभदायक जीवाणुओ की संख्या एक ग्राम मे दस करोड़ से अधिक रखी जाती है ι ये जीवाणु निम्न प्रकार के होते है-

  1. राइजोबियम – यह एक मृदा बैक्टेरिया है जो दलहनी फसलों की जड़ों पर गुलाबी रंग की गाँठे बनाकर उनमे रहते है तथा हवा मे से नत्रजन लेकर पौधो को उपलब्ध कराते है ι इसके द्वारा मृदा मे स्थिर की गई नत्रजन की मात्रा जीवाणु का प्रकार, पौधे की किस्म, मृदा गुण, वातावरण एवं की जाने वाली शस्य क्रियाओ पर निर्भर करती है ι इसके द्वारा मृदा मे स्थिर की गई नत्रजन कार्बनिक अवस्था मे होती है, उसका नुकसान बहुत कम होता है एवं पौधे ज्यादा दक्षता से उसका उपयोग कर पाते है ι एक पैकेट मात्रा (200 ग्राम) प्रति एकड़ बीजोपचार हेतु ι
  2. एजेटोबेक्टर – यह जीवाणु खाद बिना दलहन वाली फसलों मे उपयोग की जाती है ι यह जमीन मे स्वतंत्र रूप से रहकर हवा की नत्रजन को ग्रहण कर भूमि मे छोड़ते है, जो पौधो को उपलब्ध होती है ι मृदा मे इनकी संख्या मे बढ़ोतरी मृदा मे पाये जाने वाले कार्बनिक कार्बन पर निर्भर करती है ι एक पैकेट मात्रा (200 ग्राम) प्रति एकड़ बीजोपचार हेतु ι 
  3. फास्फेट विलेयक जीवाणु (पी.एस.बी.) – फसलों को फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ाने हेतु मुख्यतया डी.ए.पी. एवं सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग किया जाता है, जिनका एक बहुत बड़ा भाग जमीन मे अघुलनशील हो जाता है जिसे पौधे आसानी से ग्रहण नहीं कर पाते है ι जीवाणु खाद पी.एस.बी. इसी अघुलनशील फास्फोरस को पौधो को घुलनशील बनाकर उपलब्ध कराता है ι एक पैकेट मात्रा (200 ग्राम) प्रति एकड़ बीजोपचार हेतु ι
  4. एजोस्पाइरिलम कल्चर – यह जीवाणु खाद मृदा मे पौधो के जड़ क्षेत्र मे स्वतंत्र रूप से रहने वाले जीवाणुओ का एक नम पाउडर उत्पाद है जो वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधो को उपलब्ध कराते है ι यह जीवाणु खाद खरीफ के मौसम मे धान, मोटे अनाज तथा गन्ने की फसल के लिए विशेष उपयोगी है इनके अलावा गेहूँ व जौ की फसल के लिए भी लाभकारी है ι इसके प्रयोग से फसल के उत्पादन मे 10-12 प्रतिशत वृद्धि  होती है तथा 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नत्रजन की बचत होती है ι एक पैकेट मात्रा (200 ग्राम) प्रति एकड़ बीजोपचार हेतु ι
  5. नील हरित शैवाल – ये शैवाल मिट्टी के सद्रश्य सूखी पपड़ी के टुकड़ो के रूप मे होते है तथा धान की फसल के लिए जिसमे पानी भरा रहता है विशिष्ट लाभकारी होते है ι ये सूक्ष्म जीवाणु 20-30 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर उपलब्ध कराते है तथा फसल की 10-15 प्रतिशत उपज मे बढ़ोतरी करते है ι 10 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर पानी भी खेत मे छिड़काव के लिए ι

जीवाणु खाद के लाभ :-

  • ये जीवाणु फसलों की पौषक तत्वों की जरूरत को पूरा कर उनकी उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाते है ι
  • ये सूक्ष्म जीवाणु मृदा मे मौजूद फास्फोरस को घुलनशील बनाकर पौधो के लिए उपलब्धता बढ़ाते है ι
  • ये सूक्ष्म जीव कुछ मात्रा मे सूक्ष्म आवश्यक पौषक तत्वों जैसे –जिंक, तांबा, सल्फर, लोहा, बोरोन, कोबाल्ट व मोलिबिडिनम इत्यादि पौधो को प्रदान करते है ι
  • ये सूक्ष्म जीवाणु खेती मे बचे हुए कार्बनिक अपशिष्टों को सड़ाकर मृदा मे कार्बनिक पदार्थ की उचित मात्रा बनाये रखते है ι
  • ये सूक्ष्म जीवाणु पादप वृद्धि करने वाले हारमोन्स, प्रोटिन, विटामिन एवं अमीनो अम्ल का उत्पादन करते है तथा यह सूक्ष्म जीवाणु मृदा मे पनप रही रोग जनक फफूंद नष्ट कर लाभकारी जीवाणुओ की संख्या मे वृद्धि करते है ι
  • इन जीवाणुओ के प्रयोग से लगभग 15-30 प्रतिशत फसलोत्पादन बढ़ता है और उत्पाद की गुणवता बहुत अच्छी रहती है ι
  • इन सूक्ष्म जीवाणुओ के प्रयोग से मृदा की जलधारण शक्ति व उर्वरा शक्ति बढ़ती है जिससे फसलोत्पादन बढ़ता है ι
  • ये जीवाणु खाद प्रत्येक मौसम मे प्रति फसल लगभग 20 से 30 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर तथा फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणु प्रति हैक्टेयर लगभग 30 से 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति फसल उपलब्ध कराते है ι

जीवाणु खाद उपयोग की विधि –

जीवाणु खाद का फसल उत्पादन मे प्रयोग कई प्रकार से किया जा सकता है जैसे-

अ.     बीजोपचार द्वारा – आवश्यकतानुसार पानी मे 150 ग्राम गुड 1 लीटर पानी के हिसाब से घोल कर गर्म करे ι इसे ठण्डा कर इसमे जीवाणु खाद के तीन पैकेट (एक हैक्टेयर क्षेत्र हेतु) घोलें ι अब इस घोल को एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए आवश्यक बीज की मात्रा पर छिड़कते हुए हल्के हाथ से बीजो को पलटते जावे, जिससे बीजो के ऊपर जीवाणु खाद की एक बारीक परत चढ़ जाए ι अब बीजो को किसी छायादार स्थान पर सुखाकर शीघ्र ही बुआई करनी चाहिए ι

आ.   जड़ों के उपचार द्वारा – फल, सब्जियों एवं अन्य पौधो की जड़ों को रोपाई से पूर्व जीवाणु खाद के घोल मे लगभग 15 मिनट तक डुबोकर रखे तथा बाद मे इनकी भूमि मे रोपाई करनी चाहिए ι

इ.      भूमि उपचार – जीवाणु खाद को नम मिट्टी मे अच्छी प्रकार से मिलाकर पूरे खेत मे सायंकाल छिटक कर सिंचाई कर देनी चाहिए ι

सावधानियाँ –

  1. जीवाणु खाद को पैकेट पर लिखी फसल के लिए ही पैकेट पर अंकित अंतिम तिथि से पूर्व प्रयोग करें ι
  2. जीवाणु खाद को अत्यधिक ठंड, गर्मी एवं धूप से बचाकर रखा जाना चाहिए ι
  3. जीवाणु खाद को रासायनिक उर्वरक एवं नाशकों के साथ नहीं मिलाना चाहिए ι
  4. जीवाणु खाद को गुड के गर्म घोल मे नहीं मिलाना चाहिए अन्यथा जीवाणु मर जाएगे ι
  5. बीज को कवकनाशी, कीटनाशी एवं जीवाणु खाद सभी से उपचारित करना हो तो इसी क्रम मे प्रयोग मे लेना चाहिए ι
  6. जीवाणु खाद से उपचारित बीज को छाया मे सुखाना चाहिए ι

साभार: कृषि सेवा

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