फसल चक्र के सिद्धान्त

फसल चक्र निर्धारण से पूर्व किसान को अपनी भूमि की किस्म फसल किस्म दैनिक आवश्यताएं लागत का स्वरूप तथा भूमि की उर्वरा शकित को बनाएं रखने के उददेश्य को ध्यान में रखना चाहिए । अत फसल चक्र अपनाते समय निम्न सिद्धान्तों का अनुसरण करना चाहिए ।

पौध बढवार टॉनिक

गोमूत्र : गोमूत्र में कीटों को भगाने एवं पौध बढवार (टॉनिक) के रूप में कार्य करने की शक्ति है

एक स्प्रे पंप में 250 मिली लीटर गोमूत्र प्रति 16 लीटर पानी में डालें | (कददू वर्गीय फसलों में 150 मिली लीटर गोमूत्र प्रति 16 लीटर पानी में डालें |

मटका खाद : एक मटका खाद को 300 लीटर पानी में अच्छे से घोलकर इस विलयन को पौधे के पास जमीन पर देने से अच्छे परिणाम मिलते है (1 से 2 मटका प्रति एकड़) यदि इसी विलयन को सूती कपडे से छानकर फसलों पर छिड़कते है तो अधिक फूल व् फल लगते है |

जैविक खेती के मुख्य घटक

1.आच्छादान
(अ) मृदाच्छादन : हम जब दो बैलों से खींचने वाले हल से या कुल्टी (जोत) से भूमि की काश्तकारी या जोताई करते हैं, तब भूमि पर मिट्टी का आच्छादन ही डलते हैं। जिस से भूमि की अंतर्गत नमी और उष्णता वातावरण में उड़कर नहीं जाती, बची रहती है।
(ब) काष्टाच्छादन : जब हम हमारी फ़सलों की कटाई के बाद दाने छोड़कर फ़सलों के जो अवशेष बचते हैं, वह अगर भूमि पर आच्छादन स्वरूप डालते हैं, तो अनंत कोटी जीवजंतु और केंचवे भूमि के अंदर बाहर लगातार चक्कर लगाकर चौबीस घंटे भूमि को बलवान, उर्वरा एवं समृद्ध बनाने का काम करते हैं और हमारी फ़सलों को बढ़ाते हैं।

बायोगैस क्या है?

बायोगैस ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसका बारंबार इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका उपयोग घरेलू तथा कृषि कार्यों के लिए भी किया जा सकता है।

बायोगैस क्या है?

इसका मुख्य घटक हाइड्रो-कार्बन है, जो ज्वलनशील है और जिसे जलाने पर ताप और ऊर्जा मिलती है। बायोगैस का उत्पादन एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया द्वारा होता है, जिसके तहत कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायोगैस में बदला जाता है। चूंकि इस उपयोगी गैस का उत्पादन जैविक प्रक्रिया (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) द्वारा होता है, इसलिए इसे जैविक गैस (बायोगैस) कहते हैं। मिथेन गैस बायोगैस का मुख्य घटक है।

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