ट्राइकोडर्मा

ट्राइकोडर्मा एक घुलनशील जैविक फफुंदीनाशक है जो ट्राइकोडर्मा विरडी या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम पर आधारित है। ट्राइकोडर्मा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सडन उकठा(फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोर्म्, स्केल रोसिया डायलेकटेमिया) जो फफूंद जनित है, में फसलों पर लाभप्रद पाया गया है। धान,गेंहू, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों फलों एवं फल व्रक्षो पर रोगों से यह प्रभावकारी रोकथाम करता है। ट्राइकोडर्मा के कवक तन्तु फसल के नुकसानदायक फफूंदी के कवक तन्तुओं को लपेटकर या सीधे अंदर घुसकर उनका जीवन रस चूस लेते हैं और नुकसानदायक फफूंदों का नाश करते हैं  इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के दुवारा तथा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव

जैविक एजेंट्स/(ट्राइकोकार्ड):

यह ट्राइकोग्रामा जाति की छोटी ततैया जो अंड परजीवी है, पर आधारित है जो लैेपिडाप्टेरा परिवार के लगभग 200 प्रकार के नुकसानदेह कीड़ों के अंडों को खाकर जीवित रहता है। इस ततैया की लम्बाई 0.4 से 0.7मिमी. होती है तथा इसका जीवनचक्र निम्न प्रकार है:
अंडा देने की अवधि             16-24घण्टे
लार्वा अवधि      2-3 दिन
प्यूपा पूर्व अवधि    2 दिन
प्यूपा अवधि         2-3दिन
कुल अवधि       8-10 दिन (गर्मी)
                     9-12 दिन (जाड़ा)

trichocard

मृदा जनित बिमारियों का जैव नियंत्रण -ट्राइकोडर्मा का महत्त्व व उपयोग

Trichoderma

ट्राइकोडर्मा पादप रोग प्रबंधन विशेष तौर पर मृदा जनित बिमारियों के नियंत्रण के लिए बहुत की प्रभावशाली जैविक विधि है। ट्राइकोडर्मा एक कवक (फफूंद) है। यह लगभग सभी प्रकार के कृषि योग्य भूमि में पाया जाता है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग मृदा - जनित पादप रोगों के नियंत्रण के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

बौछारी (स्प्रिंकलर) सिंचाई तकनीक अपनाएं- भरपूज उपज पाएं

बौछारी  या स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई में पानी को छिड़काव के रूप में दिया जाता है। जिससे पानी पौधों पर वर्षा की बूंदों जैसी  पड़ती हैं। पानी की बचत और उत्पादन की अधिक पैदावार के लिहाज से बौछारी सिंचाई प्रणाली अति उपयोगी और वैज्ञानिक तरीका मानी गई है। किसानों में सूक्ष्म सिंचाई के प्रति  काफी उत्साह देखी गई है। इस सिंचाई  तकनीक से कई फायदे हैं।

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