नीलगाय के आतंक से न हों परेशान

अन्नदाताओं को अब नीलगाय के आतंक से परेशान होने की जरूरत नहीं है। अब उन्हें बिना मारे ही इनके आतंक से छुटकारा मिलेगा, वहीं फसलों की भी सुरक्षा होगी। नीलगाय को खेतों की ओर आने से रोकने के लिए  हर्बल घोल तैयार किया जाता है जिसके प्रयोग करनें से नीलगाय  फसलों  को नुकसान नहीं पहुचती है 

Neelgaay

नाडेप कम्पोस्ट

कम्पोस्ट बनाने का एक न्य विकसित तरीका नाडेप विधि है जिसे महारास्ट्र के कृषक नारायण राव पांडरी पाडे (नाडेप काका) ने विकसित किया है | नाडेप विधि में कम्पोस्ट खाद जमीन की सतह का टांका बनाकर उसमें प्रक्षेत्र अवशेष तथा बराबर मात्रा में खेती की मिट्टी तथा गोबर को मिलाकर बनाया जाता है | इस विधि से 1 किलो गोबर से 30 किलो खाद चार माह में बनकर तैयार हो जाती है | नाडेप कम्पोस्ट निम्न प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है |

जैविक कीटनाशकों से लाभ

  • जीवों एवं वनस्पतियों पर आधारित उत्पाद होने के कारण, जैविक कीटनाशक लगभग एक माह में भूमि में मिलकर अपघटित हो जाते है तथा इनका कोई भी अंश अवशेष नही रहता | यही कारण है इन्हें परिस्तिथतकीय मित्र के रूप में जाना जाता है |
  • जैविक कीटनाशक केवल लक्षित कीटों एवं बिमारियों को मारते है जब की कीटनाशक से मित्र कीट भी नष्ट हो जाते है |
  • जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों/व्याधियों में सहनशीलता एवं प्रतिरोध नही उत्पन्न होता जबकि अनेक रसायन कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों में प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न होती जा रही है जिनके कारण उनका प्रयोग अनुपयोगी होता जा रहा है |

एन.पी.वी. (न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस वायरस )

न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस वायरस (एन.पी.वी) पर आधारित हरी सुंडी (एन.पी.वी) पर आधारित हरी सुंडी (हेलिकोवर्पा आरमीजेरा) अथवा तम्बाकू सुंडी (स्पोडाप्टेरा लिटुरा) का जैविक कीटनाशक है जो तरल रूप में उपलब्ध है | इसमें वायरस कण होते है जिनसे सुंडी द्वारा खाने या संपर्क में आने पर सुंडियों का शरीर 2 से 4 दिन के भीतर गाढ़ा भूरा फूला हुआ व् सडा हो जाता है, सफ़ेद तरल पदार्थ निकलता है व् मृत्यु हो जाती है | रोग ग्रसित तथा मरी हुई सुंडियां पत्तियों एवं टहनियों पर लटकी हुई पाई जाती है |

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